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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2782
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- टिप्पणी लिखिए : (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।

अथवा
बंगाल की परम्परागत कढ़ाई पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर -

(i) बंगाल की कांथा कढ़ाई
(Kantha Embroidery of Benga)

"कांथा" (Kantha) बंगाल की पारम्परिक कढ़ाई कला है। कांथा से तात्पर्य है "पेबंद लगा वस्त्र" (Patched Cloth) | कांथा मुख्यतः बंगाल की स्त्रियों के द्वारा निर्मित किया जाता है। इसमें फटे-पुराने वस्त्रों, जैसे- साड़ी, धोती, चादर, टेबल क्लॉथ, पेटीकोट इत्यादि को कई तहों में व्यवस्थित करके एक नया रूप दिया जाता है। ये फटे-पुराने वस्त्र अक्सर जिन्हें फेंक दिया जाता है, वहाँ की महिलायें अत्यन्त परिश्रम करके एक नया वस्त्र बनाती हैं जिसे ओढ़ने, बिछाने, थैले बनाने, सजावट करने आदि में उपयोग में लेती हैं। यह उनकी मितव्ययी होने का ज्वलंत उदाहरण है।

कांथा बनाने के लिए फटे-पुराने वस्त्रों की तह जमाकर टंकाई के टाँके (Running Stitch) द्वारा चारों ओर से बोर्डर बनाया जाता है, फिर बीच के भाग में कमल, हाथी, मछली, चन्द्रमा, सूरज, शंख आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। पौराणिक गाथाओं पर आधारित चित्रों को भी वे बड़ी कुशलतापूर्वक वस्त्र पर अंकित कर देती हैं कांथा में सभी टाँके एक समान एवं समान दूरी पर लिये जाते हैं। टाँके अत्यन्त सूक्ष्म, बारीक एवं महीन लिये जाते हैं। जिससे पुराने वस्त्रों के बने होने के बावजूद भी ये बस्त्र कला के सुन्दर नमूने बन जाते हैं। अवकाश के क्षणों में बंगाली स्त्रियाँ इन्हें बनाती हैं। बेकार वस्तुओं से उपयोगी वस्तुएँ (Waste to Best Material) बनाती हैं। इसमें सिलाई के लिए धागे भी अधिकतर वे पुरानी साड़ी के बोर्डर से निकालती हैं नमूने को रंग-बिरंगे धागों से भरा जाता है। शैलजा डी० नायक ने अपनी पुस्तक Traditional Embroidery of India में लिखा है, "It is a treasured art of every door where in the Bengali ladies irrespective of their castes, classes and socio-economic groups are expertised, the Embroidery not only depricts the stitches employed but it also expresses the outflow of their creative, resourceful, imaginary and patient craftman."

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बंगाल की कांथा कढ़ाई

कांथा पटना, हुगली, फरीदपुर, खुलना, पूर्वी तथा पश्चिमी बंगाल में बनाये जाते हैं। कांथा का उपयोग चारपाई तथा चौकी (Hard Bed) पर बिछाने हेतु बिस्तर के लिए किया जाता है। आसन आदि के उपयोग में भी काम आते हैं।

कांथा कढ़ाई में टाँकों में साटिन, कच्चा टाँका (Running Stitch) तथा लूप टाँके (Loop Stitch) का अधिक उपयोग किया जाता है। स्टेम टाँके (Stem Stitch) से नमूने के सूक्ष्म रूप बनाये जाते हैं। नमूने का बाह्य रेखाचित्र बनाने में उल्टी बखिया (Back Stitch) का उपयोग किया जाता है।

कांथा कढ़ाई में सभी टाँके एक समान दूरी पर होते हैं जो वस्त्र के दोनों तरफ से एक समान दिखते हैं। अतः वस्त्र का उल्टा एवं सीधा पक्ष पहचानना अत्यन्त कठिन हो जाता है। कई बार "एप्लीक वर्क" (Applique Work) अथवा पैच वर्क (Patch Work) से भी वस्त्र को सुसज्जित किया जाता है। सफेद पृष्ठभूमि पर बोर्डर बनाने के लिए विभिन्न रंगों के वस्त्रों, जैसे - लाल, पीला, हरा, नीला, काला, जामुनी को विभिन्न प्रकार के नमूने में काटकर बोर्डर पर हेम स्टिच (Hem Stitch) द्वारा सिलाई कर दिया जाता है। रंग संयोजन, टाँकों की समानता, सूक्ष्मता एवं बारीकी तथा नमूनों के सुन्दर सामंजस्य से कांथा वस्त्र अत्यन्त सौन्दर्यमय एवं आकर्षक लगता है।

कांथा के प्रकार
(Types of Kantha)

कांथा मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं। प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है-

1. लैप कांथा (Lap Kantha) - यह एक चौकोर क्वील्ट किया हुआ (Quilted Cloth) वस्त्र होता है। इसके किनारों को एवं समस्त वस्त्र को साधारण कच्चे टाँके (Simple Running Stitch) अथवा डार्निंग टाँके (Darning Stitch) से सिल दिया जाता है। इसका उपयोग मुख्यत; सर्दी के दिनों में ओढ़ने एवं बिछाने में किया जाता है।

2. ओर कांथा (Oar Kantha) - ओर कांथा तकिये का गिलाफ होता है। यह आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 2 फीट एवं चौड़ाई डेढ़ फीट होती है। इसमें सम्पूर्ण वस्त्र पर नमूने बने होते हैं। फूल-पत्तियों, पेड़-पौधे, पक्षियों आदि के चित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक वस्त्र पर उतारा जाता है। वस्त्र के बोर्डर में पशु-पक्षी के चित्र, कोनों पर फूल-पत्ते के चित्र बने होते हैं तथा मध्य के भाग में कमल के फूल का चित्रण किया जाता है और कांथा (Oar Kantha) देखने में अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक लगता है।

3. दुर्जनी (Durjani) - इसे " थैलिया" (Thalia) भी कहते हैं। यह एक "वर्ग" (Square) के आकार का वस्त्र होता है। इसके बोर्डर में फूल-पत्तियों के नमूने एवं मध्य में कमल के फूल के नमूने बने होते हैं। कुछ दुर्जनी में पशु-पक्षी का भी चित्र देखने को मिलता है। इस चौकोर वस्त्र के तीनों कोणों को पकड़कर मध्य में लाकर सिल दिया जाता है। जिससे यह एक लिफाफे (Envelop) की तरह दिखाई देता है। किनारों के खुले भागों से लटकाने के लिए डोरी (Strip) बना दी जाती है जिससे इसे ऊपर लटकाकर टांगा जा सकता है। नमूने को सामान्यतया कच्चे टांके (Running Stitch) से कुशलता एवं दक्षतापूर्वक काढ़ा जाता है।

4. सुजनी (Sujani) - बंगाल का "सुजनी" काफी लोकप्रिय एवं प्रचलित कांथा है। यह एक चादर की तरह होता है जिसकी लम्बाई 6 hफीट एवं चौड़ाई तीन से साढ़े तीन फीट रखी जाती है। यह चादर विशेष अवसरों पर, जैसे- दशहरा, दीपावली, होली, तीज-त्योहार, शादी- विवाह, जन्मदिन, पार्टी आदि के अवसर पर बिछायी जाती है। इस आयताकार चादर पर अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक नमूने बनाये जाते हैं। नमूने से पूर्व इस आयताकार चादर को 9 बराबर भागों में बाँटा जाता है। तत्पश्चात् इन पर बोर्डर बनाये जाते हैं। मध्य के रिक्त भाग़ में कमल के सुन्दर फूलों का चित्रण किया जाता है। प्रत्येक आयताकार हिस्सों में पशु-पक्षियों, फलों-फूलों, लताओं आदि के नमूने को अंकित किया जाता है। इसके अतिरिक्त पौराणिक गाथाओं पर आधृत चित्र, नृत्य करती बालायें, गुड़िया, अश्व पर सवार आदमी, फल खाती चिड़िया, फूलों का रस चूसती तितलियों का भी बड़ा कुशलतापूर्वक चित्रण किया जाता है। इन्हें साधारण कच्चे टाँकों से काढ़ा जाता है। साधारण टाँकों से कढ़े यह कांथा अत्यन्त सुन्दर एवं मनमोहक लगता है।

5. आरसीलता (Arshilata) - यह कांथा आइना (Mirror) कंघी (Comb) एवं अन्य शृंगार की सामग्रियों को कवर करने के लिए बनायी जाती हैं। यह पतला टुकड़ा होता है जिसकी चौड़ाई सामान्यतया 8 इंच तथा लम्बाई 12 इंच होती है। इसके चारों ओर सुन्दर एवं आकर्षक नमूनों से बोर्डर बने होते हैं। वस्त्र के मध्य में कृष्ण लीला अथवा रास मंडल के सुन्दर एवं उत्कृष्ट नमूने बने होते हैं। कमल, लताएँ, पेड़-पौधें, फूल-पत्तियों आदि के नमूने भी बने होते हैं।

6. बेटन (Bayton) -- यह भी एक छोटा चौकोर टुकड़ा होता है। यह कई उपयोगी पुस्तकें, बहुमूल्य सामग्रियों आदि को लपेटकर रखने में काम आता है। इसकी लम्बाई एवं चौड़ाई 3 फीट होती है। वस्त्र के मध्य में "शतदल कमल" सौ दलों वाला (Hundred Petals) कमल के फूलों का नमूना बना होता है। इसे "शतदल पादम् " (Satdala Padma) फूल-पत्तियों (Foliages), पक्षियों (Birds), रथ (Chariot), हाथी, घोड़े आदि के भी नमूने बने होते हैं, कई बेटन (Bayton) कांथा पर "भगवान गणेश" एवं "विद्या की देवी सरस्वती" की प्रतिमा का भी चित्रण किया जाता है। पुस्तक लपटेने के लिए जिस बेटन कांथा का उपयोग किया जाता है, उस पर मुख्यतः देवी सरस्वती के नमूने बने होते हैं।

7. रूमाल (Rumal) - रूमाल कांथा भी अत्यन्त लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध कांथा है। यह एक वर्गाकार एक फुट का टुकड़ा होता है। इसके बोर्डर में फूल-पत्तियों के नमूने तथा मध्य में कमल के फूल के नमूने बने होते हैं। बंगाल के कांथा का चादर, बेड कवर, थौलियाँ, दीवार पर टाँगने वाले सजावट के सामान की प्रसिद्धि दूर-दूर के देशों में है। नमूना साधारण कच्चे टाँके (Simple Running Stitch) से बनाया जाता है। परन्तु चैन टाँके, उल्टी बखिया (Back Stitch), साटिक (Satin Stitch) तथा हेरिंग बोन टाँके का भी उपयोग नमूने बनाने में किया जाता है।

कांथा का प्रचलन आजकल भी है। आज भी बंगाल के ग्रामीण इलाकों में कांथा का निर्माण किया जाता है। अवकाश के क्षणों में बंगाल की स्त्रियाँ इसे बनाती हैं। इस कला का व्यवसायीकरण करने के लिए बंगाल में कई केन्द्र खोले गये हैं।

(ii) कश्मीर की कशीदाकारी
(Embroidery of Kashmir)

कश्मीर भी कढ़ाई किए हुए वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध था। पश्मीना शाल के अतिरिक्त कश्मीर की कढ़ी हुई साड़ियाँ, कढ़े हुए नमदा तथा कढ़ाई किए हुए सिल्क और अन्य वस्त्र भी प्रसिद्ध थे। कश्मीर की कढ़ाई को 'कशीदा' कहा जाता था और इसमें साधारण टांके, जैसे- साटिन, उल्टी बखिया, फंदे वाले टांके, साधारण टंकाई के टांके, हेरिंगबेन तथा चेन टांके प्रयोग किए जाते थे। कश्मीर में कढ़ाई का काम प्रायः पुरुष और युवा लड़के करते थे। एक अनुभवी पुरुष मास्टर के समान टांके का नाम बोलता था और लड़के शीघ्रता से उसे बना हालते थे। कश्मीर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर घाटी है। कशीदा काढ़ने वाले प्राकृतिक सौंदर्य को ही वस्त्र में सजीव कर देते थे। नमूनों का उनके पास अभाव नहीं था। प्राकृतिक चित्रण में वे इतने पटु हो जाते थे कि प्रकृति से भी आगे बढ़ जाते थे। 'कशीदा' कढ़ाई के वस्त्र दोनों ओर सीधे रहते थे।

कढ़ाई में रंग-बिरंगे ऊनी और रेशमी धागों का प्रयोग किया जाता था। इनके नमूनों में फूल-फलों के गुच्छे, चिनार की पत्तियाँ, रंग-बिरंगी चिडियाँ आदि के नमूनों का बाहुल्य रहता था। कश्मीरी वस्त्रों के सौंदर्य का कारण इनकी सुन्दर रंग योजना रहती थी। चटक रंगों को भी इतने सुन्दर ढंग से लगाया जाता था कि समस्त कढ़ाई का प्रभाव नेत्रों को सुखद लगता था। समस्त कढ़ाई में रुखापन कहीं देखने को नहीं मिलता था, बल्कि वे स्निग्धता से भरपूर दिखाई देते थे।

प्रत्येक टाँके की सूक्ष्मता और स्पष्ट बाह्य रेखाओं को देखकर मानव की उंगलियों की प्रवीणता पर अंचम्भित हुए बिना नहीं रहा जाता है। शाल तथा स्कार्फो पर रफूगरी की कढ़ाई भी की जाती थी। आजकल भी कश्मीर में कढ़ाई के द्वारा अनेक वस्त्र बनाए जाते हैं, परन्तु अब उनमें वह सौन्दर्य नहीं है, जो पहले रहता था। कश्मीर के हल्के एवं पतले पश्मीना-शाल नमूनों के सूक्ष्मतम चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे। कश्मीर का नमदा गलीचे के समान काम आने वाला मोटा, ऊनी, फेल्ट किया हुआ वस्त्र था। इतने मोटे वस्त्र पर भी कश्मीरी कसीदाकार सुन्दर नमूनों पर अति सुन्दर कढ़ाई करते थे। इनमें ऊनी धागों का ही प्रयोग किया जाता था, जो चटक रंग के होते थे। इनमें चिनार की पत्तियों के नमूनों के साथ सुन्दर रंग की सुकोमल टहनियाँ और फूल-फल तथा पक्षियों आदि के भी नमूने रहते थे। इनके नमूने बड़े-बड़े तथा समस्त वस्त्र को घेर लेने वाले होते थे। नमदा की कढ़ाई में केवल मात्र चेन - स्टिच का प्रयोग होता था। कढ़ाई के द्वारा आजकल भी पश्मीना, शाल, नमदा, टीकोजी, कोट- कार्डिगन आदि बनते हैं और ये अत्यन्त लोकप्रिय भी हैं। आजकल कश्मीर की कशीदाकारी की कला का पुनरुद्धार किया जा रहा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विभिन्न प्रकार की बुनाइयों को विस्तार से समझाइए।
  2. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 1. स्वीवेल बुनाई, 2. लीनो बुनाई।
  3. प्रश्न- वस्त्रों पर परिसज्जा एवं परिष्कृति से आप क्या समझती हैं? वस्त्रों पर परिसज्जा देना क्यों अनिवार्य है?
  4. प्रश्न- वस्त्रों पर परिष्कृति एवं परिसज्जा देने के ध्येय क्या हैं?
  5. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (1) मरसीकरण (Mercercizing) (2) जल भेद्य (Water Proofing) (3) अज्वलनशील परिसज्जा (Fire Proofing) (4) एंटी-सेप्टिक परिसज्जा (Anti-septic Finish)
  6. प्रश्न- परिसज्जा-विधियों की जानकारी से क्या लाभ है?
  7. प्रश्न- विरंजन या ब्लीचिंग को विस्तापूर्वक समझाइये।
  8. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabrics) का वर्गीकरण कीजिए।
  9. प्रश्न- कैलेण्डरिंग एवं टेण्टरिंग परिसज्जा से आप क्या समझते हैं?
  10. प्रश्न- सिंजिइंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- साइजिंग को समझाइये।
  12. प्रश्न- नेपिंग या रोयें उठाना पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - i सेनफोराइजिंग व नक्काशी करना।
  14. प्रश्न- रसॉयल रिलीज फिनिश का सामान्य परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- परिसज्जा के आधार पर कपड़े कितने प्रकार के होते हैं?
  16. प्रश्न- कार्य के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  17. प्रश्न- स्थायित्व के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  18. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabric) किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
  19. प्रश्न- स्काउअरिंग (Scouring) या स्वच्छ करना क्या होता है? संक्षिप्त में समझाइए |
  20. प्रश्न- कार्यात्मक परिसज्जा (Functional Finishes) किससे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  21. प्रश्न- रंगाई से आप क्या समझतीं हैं? रंगों के प्राकृतिक वर्गीकरण को संक्षेप में समझाइए एवं विभिन्न तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- रंगने की विभिन्न प्रावस्थाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- कपड़ों की घरेलू रंगाई की विधि की व्याख्या करें।
  25. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा रंगों द्वारा कैसे की जाती है? बांधकर रंगाई विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- बाटिक रंगने की कौन-सी विधि है। इसे विस्तारपूर्वक लिखिए।
  27. प्रश्न- वस्त्र रंगाई की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? विस्तार से समझाइए।
  28. प्रश्न- वस्त्रों की रंगाई के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  29. प्रश्न- डाइरेक्ट रंग क्या हैं?
  30. प्रश्न- एजोइक रंग से आप क्या समझते हैं?
  31. प्रश्न- रंगाई के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त में इसका वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dye) के लाभ तथा हानियाँ क्या-क्या होती हैं?
  33. प्रश्न- प्राकृतिक रंग (Natural Dyes) किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dyes) के क्या-क्या उपयोग होते हैं?
  35. प्रश्न- छपाई की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- इंकजेट (Inkjet) और डिजिटल (Digital) प्रिंटिंग क्या होती है? विस्तार से समझाइए?
  37. प्रश्न- डिजिटल प्रिंटिंग (Digital Printing) के क्या-क्या लाभ होते हैं?
  38. प्रश्न- रंगाई के बाद (After treatment of dye) वस्त्रों के रंग की जाँच किस प्रकार से की जाती है?
  39. प्रश्न- स्क्रीन प्रिटिंग के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- स्टेन्सिल छपाई का क्या आशय है। स्टेन्सिल छपाई के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक रंगाई प्रक्रिया के बारे में संक्षेप में बताइए।
  42. प्रश्न- ट्रांसफर प्रिंटिंग किसे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  43. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक छपाई (Polychromatic Printing) क्या होती है? संक्षिप्त में समझाइए।
  44. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए : (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  49. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  50. प्रश्न- कसूती कढ़ाई का विस्तृत रूप से उल्लेख करिए।
  51. प्रश्न- सांगानेरी (Sanganeri) छपाई का विस्तृत रूप से विवरण दीजिए।
  52. प्रश्न- कलमकारी' छपाई का विस्तृत रूप से वर्णन करिए।
  53. प्रश्न- मधुबनी चित्रकारी के प्रकार, इतिहास तथा इसकी विशेषताओं के बारे में बताईए।
  54. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- जरदोजी कढ़ाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  56. प्रश्न- इकत शब्द का अर्थ, प्रकार तथा उपयोगिता बताइए।
  57. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- बगरू (Bagru) छपाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- कश्मीरी कालीन का संक्षिप्त रूप से परिचय दीजिए।
  60. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों पर संक्षिप्त में एक टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  63. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  64. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  65. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए |
  66. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- पटोला वस्त्रों का निर्माण भारत के किन प्रदेशों में किया जाता है? पटोला वस्त्र निर्माण की तकनीक समझाइए।
  68. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- पुरुषों के वस्त्र खरीदते समय आप किन बातों का ध्यान रखेंगी? विस्तार से समझाइए।
  71. प्रश्न- वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करने वाले तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- फैशन के आधार पर वस्त्रों के चुनाव को समझाइये।
  73. प्रश्न- परदे, ड्रेपरी एवं अपहोल्स्ट्री के वस्त्र चयन को बताइए।
  74. प्रश्न- वस्त्र निर्माण में काम आने वाले रेशों का चयन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  75. प्रश्न- रेडीमेड (Readymade) कपड़ों के चुनाव में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  76. प्रश्न- अपहोल्सटरी के वस्त्रों का चुनाव करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  77. प्रश्न- गृहोपयोगी लिनन (Household linen) का चुनाव करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है?
  78. प्रश्न- व्यवसाय के आधार पर वस्त्रों के चयन को स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- सूती वस्त्र गर्मी के मौसम के लिए सबसे उपयुक्त क्यों होते हैं? व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अवसर के अनुकूल वस्त्रों का चयन किस प्रकार करते हैं?
  81. प्रश्न- मौसम के अनुसार वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करते हैं?
  82. प्रश्न- वस्त्रों का प्रयोजन ही वस्त्र चुनाव का आधार है। स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- बच्चों हेतु वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करेंगी?
  84. प्रश्न- गृह उपयोगी वस्त्रों के चुनाव में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
  85. प्रश्न- फैशन एवं बजट किस प्रकार वस्त्रों के चयन को प्रभावित करते हैं? समझाइये |
  86. प्रश्न- लिनन को पहचानने के लिए किन्ही दो परीक्षणों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- ड्रेपरी के कपड़े का चुनाव कैसे करेंगे? इसका चुनाव करते समय किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है?
  88. प्रश्न- वस्त्रों की सुरक्षा एवं उनके रख-रखाव के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
  89. प्रश्न- वस्त्रों की धुलाई के सामान्य सिद्धान्त लिखिए। विभिन्न वस्त्रों को धोने की विधियाँ भी लिखिए।
  90. प्रश्न- दाग धब्बे कितने वर्ग के होते हैं? इन्हें छुड़ाने के सामान्य निर्देशों को बताइये।
  91. प्रश्न- निम्नलिखित दागों को आप किस प्रकार छुड़ायेंगी - पान, जंग, चाय के दाग, हल्दी का दाग, स्याही का दाग, चीनी के धब्बे, कीचड़ के दाग आदि।
  92. प्रश्न- ड्राई धुलाई से आप क्या समझते हैं? गीली तथा शुष्क धुलाई में अन्तर बताइये।
  93. प्रश्न- वस्त्रों को किस प्रकार से संचयित किया जाता है, विस्तार से समझाइए।
  94. प्रश्न- वस्त्रों को घर पर धोने से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- धुलाई की कितनी विधियाँ होती है?
  96. प्रश्न- चिकनाई दूर करने वाले पदार्थों की क्रिया विधि बताइये।
  97. प्रश्न- शुष्क धुलाई के लाभ व हानियाँ लिखिए।
  98. प्रश्न- शुष्क धुलाई में प्रयुक्त सामग्री व इसकी प्रयोग विधि को संक्षेप में समझाइये?
  99. प्रश्न- धुलाई में प्रयुक्त होने वाले सहायक रिएजेन्ट के नाम लिखिये।
  100. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचित करने का क्या महत्व है?
  101. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचयित करने की विधि बताए।

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